मजबूत भारत का आधार संविधान!
26 नवंबर भारत के इतिहास का वो दिन जिसे भले आम जनमानस 15 अगस्त और 26 जनवरी की तरह सेलिब्रेट ना करता हो लेकिन उसका महत्व हर भारतीय की खुशहाली की नींव है।
आजादी के 75 वर्षों के बाद भी भारतीय संविधान अक्षुण्ण, जीवंत और सतत क्रियाशील बना हुआ है। भारतीय संविधान को संविधान सभा ने 26 नवंबर 1949 को ग्रहण किया था और इसे 26 जनवरी 1950 को लागू किया गया था।
दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र की ‘आत्मा’ यानी भारतीय संविधान। इसे हमारे ‘स्वधीनता के महायत्र’ से जागृत हुई राजनीतिक चेतना की ही परिणाम कहना उचित होगा। देश के सभी समुदायों और वर्गों के हितों को देखते हुए विस्तृत प्रावधानों का समावेश इसकी मूल भावना है।
ये संविधान की शक्ति ही है जिससे भारत निरंतर लोकतांत्रिक, आर्थिक, धार्मिक, मानवाधिकार के पथ पर गतिशील बना हुआ है और आजादी के पूर्व संजोय गए अपने लक्ष्यों की प्राप्ति की ओर अग्रसर है।
संविधान माने:
ये नियमों और उपनियमों का महज एक लिखित दस्तावेज मात्र नहीं है, ये नागरिकों की जरूरतों को देखते हुए निरंतर विकसित होता रहता है। इसके आधार पर देश और प्रदेश की सरकारें काम करती है। हर नागरिक के अधिकारों का इसमें विवरण है। ये भारत के आदर्शों, उद्देश्यों और मूल्यों का संचित प्रतिबिंब है।
भारतीय संविधान समिति का गठन:
1946 में ‘क्रिप्स मिशन’ के फेल हो जाने के बाद तीन सदस्यीय कैबिनेट मिशन को भारत भेजा गया था। कैबिनेट मिशन द्वारा पारित एक प्रस्ताव के से ही आखिर भारतीय संविधान के निर्माण के लिए एक बुनियादी ढांचे का प्रारूप को मंजूरी मिला, जिसे ‘संविधान सभा’ नाम दिया गया।
29 अगस्त 1947 को भारतीय संविधान का मसौदा तैयार करने वाली समिति की स्थापना हुई थी। डॉ. भीमराव आंबेडकर को इस समिति का अध्यक्ष नियुक्त किया गया था। इसी वजह से डॉ. आंबेडकर को संविधान का निर्माता भी कहा जाता है।
2 साल, 11 महीने और 18 दिनों की महनत के बाद संविधान सभा के 284 सदस्यों ने 24 जनवरी 1950 को दस्तावेज पर हस्ताक्षर किए थे।
भारतीय संविधान की प्रस्तावना:
दुनिया के सभी संविधानों में श्रेष्ठ माने जाने वाली भारतीय संविधान की प्रस्तावना का आरंभ ‘हम भारत के लोग’ से होता है। जो भारत को एक संपूर्ण प्रभुत्व-संपन्न समाजवादी पंथनिरपेक्ष लोकतंत्रात्मक गणराज्य बनाने के लिए, तथा उसके समस्त नागरिकों को: सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक न्याय, विचार, अभिव्यक्ति, विश्वास, धर्म और उपासना की स्वतंत्रता, प्रतिष्ठा और अवसर की समता, प्राप्त कराने के लिए संकल्पित है।
1976 में हुए 42 वें संविधान संशोधन अधिनियम के द्वारा प्रस्तावना में संशोधन किया गया। जिसमें तीन नए शब्द- समाजवादी, धर्मनिरपेक्ष और अखंडता को जोड़ा गया।
विशेषज्ञ भारतीय संविधान की प्रस्तावना को 'अमेरिकी संविधान' से प्रभावित और विश्व में सर्वश्रेष्ठ मानते हैं।
संविधान से मिले आपको 6 मौलिक आधार:
भारत का संविधान हर भारतीय को 6 मौलिक अधिकार प्रदान करता है:
समता का अधिकार (अनुच्छेद 14-18)
स्वतंत्रता का अधिकार (अनुच्छेद 19-22)
शोषण के विरुद्ध अधिकार (अनुच्छेद 23-24)
धर्म की स्वतंत्रता का अधिकार (अनुच्छेद 25-28)
संस्कृति और शिक्षा संबंधी अधिकार (अनुच्छेद 29-30)
संवैधानिक उपचारों का अधिकार (अनुच्छेद 32)
आपके मौलिक अधिकारों का उद्देशय और विशेषताएँ:
मौलिक अधिकार का मुख्य उद्देश्य राजनीतिक लोकतंत्र की भावना को प्रोत्साहित रखना है । यह एक प्रकार से विधायिका और कार्यपालिका को मनमानी कर अधिकार हनन वाले कानून बनाने से रोकता है।
संविधान द्वारा संरक्षितृ आपके मौलिक अधिकारों को देश के संविधान द्वारा गारंटी एवं सुरक्षा प्रदान की गई है।
कुछ अधिकार सिर्फ नागरिकों के लिये उपलब्ध हैं, जबकि अन्य सभी व्यक्तियों के लिये उपलब्ध हैं चाहे वे नागरिक, विदेशी या कानूनी व्यक्ति हों उदाहरण - परिषद एवं कंपनियां।
ये न्यायोचित हैं। जब भी इनका उल्लंघन होता है कोई भी व्यक्ति इसके खिलाफ सीधे सर्वोच्च न्यायालय जा सकता है।
इसके अलावा भारतीय संविधान की धर्मनिरपेक्षता को भी इसकी प्रमुख विशेषता माना जाता है। धर्मनिरपेक्ष होने के कारण भारत में किसी एक धर्म को विशेष मान्यता नहीं दी गई है।
विश्व का सबसे विशाल संविधान :
आपको जानकर गर्व होगा कि आपका भारतीय संविधान दुनिया का सबसे बड़ा लिखित संविधान है। इसको लागू करते वक्त इसमें 395 अनुच्छेद, 8 अनुसूचियां और 22 भाग थे, जो गतिशील होते हुए मौजूदा समय में बढ़कर 448 अनुच्छेद, 12 अनुसूचियां और 25 भाग हो गए हैं। अब इसमें 5 परिशिष्ठ भी जोड़ दिये गये हैं, जो प्रारंभ में नहीं थे।
भारतीय संविधान का संसदीय स्वरूप :
संविधान में सरकार के 'संसदीय स्वरूप' की भी व्यवस्था है। वैसे तीन केंद्रीय कार्यपालिका का संवैधानिक प्रमुख राष्ट्रपति होता है। भारत के संविधान की धारा 79 के मुताबिक़ केंद्रीय संसद की परिषद में राष्ट्रपति और दो सदन हैं जिन्हें राज्यों की परिषद (राज्य सभा) तथा लोगों का सदन (लोक सभा) के नाम से जाना जाता है. इसी तह से राज्यों में विधानसभा और राज्यपाल की व्यवस्था है। संविधान की धारा 74 (1) में ये व्यवस्था की गई है कि राष्ट्रपति की सहायता करने और उन्हें सलाह देने के लिए एक 'मंत्री परिषद' होगी जिसका प्रमुख प्रधानमंत्री होगा और राष्ट्रपति सलाह के मुताबिक़ अपने कार्यों का निष्पादन करेगा। इस प्रकार वास्तविक कार्यकारी शक्ति मंत्रिपरिषद में निहित है जिसका प्रमुख प्रधानमंत्री होता है।
डिस्क्लेमर:
ऊपर व्यक्त विचार लेखक के निजी हैं और ये आवश्यक रूप से आजादी.मी के विचारों को परिलक्षित नहीं करते हैं।
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