जन्मदिन विशेष: महात्मा ज्योतिबा फुले
आज महात्मा ज्योतिबा फुले की जयंती पर लोग उन्हें और उनके द्वारा किए गए महान कार्यों को याद कर नमन करते हुए श्रद्धांजलि अर्पित कर रहे हैं। ऐसे में हम आपके लिए अपने इस लेख में लाए है उनका जीवन परिचय और उनके विचार।
महात्मा ज्योतिबा फुले की जयंती हर साल आज ही के दिन यानी 11 अप्रैल को मनाई जाती हैं। ज्योतिबा फुले एक महान समाज सुधारक, लेखक, क्रांतिकारी, दार्शनिक और सामाजिक कार्यकर्ता थे। दलितों, शोषितों, वंचितों, महिलाओं के जीवन में सार्थक परिवर्तन लाने के लिए उनके महती प्रयास युगांतर स्मरणीय रहेंगे। उन्होंने अपने पूरे जीवन में छुआछूत, स्त्री शिक्षा, विधवा विवाह जैसी समाज में व्याप्त बुराइयों को समाप्त करने के लिए संघर्ष किया। जिसकी वजह से वह आज भी युवा पीढ़ी के लिए वें प्रेरणा स्रोत हैं और युगांतर रहेंगे।
संक्षिप्त जीवन परिचय
महात्मा ज्योतिबा फुले 19वीं सदी के महान समाज सुधारक, समाजसेवी, लेखक और क्रांतिकारी कार्यकर्ता थे। 11 अप्रैल 1827 को पुणे में गोविंदराव और चिमनाबाई के घर उनका जन्म हुआ था। ज्योतिराव का परिवार पेशवाओं के लिए फूलवाला के तौर पर काम करता था, इसलिए उन्हें मराठी में "फुले" कहा जाने लगा। उनका विवाह सन् 1840 में सावित्रीबाई से हुआ था। महात्मा ज्योतिराव फुले ने समाज में फैली महिला विरोधी कुरीतियों, दलितों से होने वाले भेदभाव के ख़िलाफ़ अपनी आवाज़ बुलंद की थी। उन्होंने अपना पूरा जीवन महिलाओं को शिक्षा का अधिकार दिलाने , बाल-विवाह रोकने, विधवा-विवाह का समर्थन करने और दलितों के उत्थान में लगा दिया।
समाज के वंचित और अनुसूचित जाति के लिए उनके उल्लेखनीय कार्यों को देखते हुए 1888 में मुंबई में एक विशाल जनसभा में उस समय के एक प्रख्यात समाजसेवी राव बहादुर विट्ठलराव कृष्णाजी वान्देकर ने उन्हें "महात्मा" की उपाधि दी थी। तब से उनके नाम के आगे महात्मा जोड़ा जाने लगा।
महात्मा ज्योतिबा फुले जी के विचार
· शिक्षा, स्त्री और पुरुष की प्राथमिक आवश्यकता है।
· स्वार्थ अलग अलग रुप धारण करता है, कभी जाति का तो कभी धर्म का।
· ईश्वर एक है और वो ही सभी लोगों का कर्ताधर्ता है।
· जातिगत और लिंग के आधार पर किसी के साथ भेदभाव करना महापाप है।
· अच्छे काम करने के लिए कभी भी गलत उपायों का सहारा नही लेना चाहिए।
· आपके संघर्ष में शामिल होने वालों से उसकी जाति मत पूछिए।
· लड़कियों के लिए पहला स्कूल खोल जलाई महिला शिक्षा की ज्योति।
ज्योतिबा फुले का मानना था कि समाज और देश तभी आगे बढ़ सकता है जब महिलाएं भी शिक्षित हों। जब देश में बच्चियों और महिलाओं की शिक्षा के लिए किसी विद्यालय की व्यवस्था नहीं थी, तब 1848 में उन्होंने महाराष्ट्र के पुणे में पहला बालिका विद्यालय खोल दिया। विद्यालय तो खुल गया लेकिन समस्या यह थी कि उसमें पढ़ाने के लिए कोई शिक्षिका उपलब्ध नहीं थी। फुले ने तब अपनी पत्नी सावित्री बाई को स्वयं पढ़ाया और उन्हें शिक्षक बनाया। इसके बाद सावित्री बाई लड़कियों के लिए शुरू किए गए स्कूल में पढ़ाने लगीं।
समाज में फैली महिला विरोधी कुरीतियों और उनके शोषण के खिलाफ आवाज उठाने वाले महान समाज सुधारक ज्योतिबा फुले के प्रयासों को हमेशा महिला सशक्तिकरण की दिशा में महत्वपूर्ण योगदान की तरह याद किया जाता है और हमेशा रहेगा, उन्हें भावपूर्ण श्रद्धांजलि।
डिस्क्लेमर:
ऊपर व्यक्त विचार लेखक के निजी हैं और ये आवश्यक रूप से आजादी.मी के विचारों को परिलक्षित नहीं करते हैं।
Comments