प्रेस रिलीज़
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15 जून को फ्रेडरिक नौमन फाउंडेशन (FNF) के दिल्ली क्षेत्रीय कार्यालय के सहयोग द्वारा, सेंटर फॉर सिविल सोसाइटी (CCS) ने, शारीरिक एवं अधिगम दिव्यांग छात्रों पर कोविड-19 महामारी के प्रभाव को समझने के लिए, एक वेबिनार का आयोजन किया।
इस वेबिनार द्वारा, कोविड-19 महामारी के कई पेहलुए, जिनके कारण दिव्यांग व्यक्तियों के समुदाय के लिए, विशिष्ट और समावेशी शिक्षा की प्राप्यता और भी कठिन हो गई है, दर्शकों को पता लगी।। महामारी के परिणामस्वरूप, सामाजिक बहिष्कार और गरीबी की दरें उच्च हुई, दिव्यांग व्यक्तियों के शिक्षा और रोजगार के अधिकार में बाधा उत्पन्न हुई, और उनकी आर्थिक स्वतंत्रता में कमी देखने को मिलीI इसके अलावा, ऑनलाइन लर्निंग से दूरस्थ शिक्षा में बदलाव ने दिव्यांग व्यक्तियों के लिए उच्चतम शिक्षा प्रदान करने के प्रति कई चुनौतियां उत्पन्न कीं।
पैनल चर्चा की शुरुआत सेंटर फॉर सिविल सोसाइटी, नई दिल्ली की सीईओ लक्ष्मी गोयल द्वारा दिए गए सम्बोधन और परिचय के साथ हुई। अपने सम्बोधन में, लक्ष्मी ने दिव्यांगजन अधिकार अधिनियम, 2016 जैसे कानून का उल्लेख करते हुए, कोविड-19 के कारण दिव्यांग छात्रों के शैक्षिक विकास में दो साल का अंतराल होने से, उनकी अधिगम में बिगड़ाव के प्रति, तत्काल परवाह की आवश्यकता पे ज़ोर दिया।
इसके बाद हेसन, जर्मनी की राज्य संसद के सदस्य यांकी पुएरसुएन ने मुख्य सम्बोधन में दिव्यांग शिक्षार्थियों के लिए अवसरों को बढ़ाने के लिए जर्मन सरकार द्वारा किए गए विकासों को साझा किया। उन्होंने समावेशी शिक्षा में कई तरह के बाधाओं जैसे - दिव्यांगता, गरीबी, भाषा, धर्म, जाती एवं पलायन का उल्लेख किया। पुएरसुएन ने सभी एकत्रित श्रोताओं को याद दिलाया कि समावेशिता के आदर्श केवल स्कूलों और शिक्षा तक ही सीमित नहीं हैं, बल्कि बड़े पैमाने पर समाज के लिए जीवन का एक तरीका बनना चाहिए।
इसके बाद, मुख्य पैनल चर्चा शुरू हुई। पैनल में मैत्रेय शाह (भारत), जो दृष्टिबाधित वकील हैं, डॉ अर्पण कृष्ण देब (भारत), स्टेप बाय स्टेप स्कूल में शिक्षक और समावेशी शिक्षा विशेषज्ञ, और दिलशान फर्नांडो (श्रीलंका), गुएल्फ़ विश्वविद्यालय में शोधकर्ता और दिव्यांगता के कारण होने वाली बाधाओं पर विशेषज्ञ, शामिल थे। इस चर्चा का संचालन रोशन गांधी, सीईओ, सिटी मोंटेसरी स्कूल, लखनऊ ने किया।
पैनल में दिव्यांग शिक्षार्थी, शिक्षक और शोधकर्ता नें, न केवल दिव्यांगता की शैक्षिक चुनौतियों पर प्रकाश डाला, बल्कि समाज के कारण होने वाली समस्याओं को भी उजागर किया जो दिव्यांगत शिक्षार्थियों को हानि पहुँचाती हैं और उन्हें समाज में शामिल होने में बाध्य बनती है।
डॉ अर्पण ने बताया कि माता-पिता को अपने बच्चे की अधिगम दिव्यांगता स्वीकार करने में समय लगता है। ऐसे में अधिगम दिव्यांगता का परिक्षण करने के साधन, सामाज के मात्र कुछ ही लोगों को उपलब्ध है। मैत्रेय शाह ने अपने अनुभव से कुछ अंश लेकर दर्शकों को साझा किया कि दिव्यांग समुदाय के लिए बाधाएं, अधिकतर सामाज द्वारा निर्मित की गयी है। उन्होंने कुछ चुनौतियों पर प्रकाश डाला, जिनमें प्रवेश से निषेध, अधिगम बाधाओं का सामना, आवश्यक प्रारूपों में पठन सामग्री न मिलना, सामाजिक संबंध, वास्तविक बाधाएं, और दूसरों के द्वारा व्यवहार संबंधी बाधाओं का सामना करना शामिल है। श्री फर्नांडो ने दर्शकों को यह याद दिलाते हुए चर्चा का समापन किया कि शिक्षा में नौकरशाही व्यवहार की उम्मीद करते हुए, समावेशिक शिक्षा के रूप में दिव्यांग छात्रों के ज़रूरतों को अलग नहीं कर सकते।
डॉ कार्स्टन क्लेइन, प्रमुख, क्षेत्रीय कार्यालय, एफएनएफ दक्षिण एशिया ने अपने सम्बोधन में, पैनलिस्टों और दर्शकों को उनके प्रश्नों के लिए धन्यवाद देते हुए,न केवल शिक्षा बल्कि समाज को सही मायने में समावेशी बनाने के लिए, समाज द्वारा और अधिक काम करने की आवश्यकता पर प्रकाश डालते हुए, पैनल का समापन किया।
डिस्क्लेमर:
ऊपर व्यक्त विचार लेखक के निजी हैं और ये आवश्यक रूप से आजादी.मी के विचारों को परिलक्षित नहीं करते हैं।
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