चांदनी चौक की रौनक़ हैं ये

चांदनी चौक की रौनक़ हैं ये - The highlights of chandni chowk

ऐसी कौन सी जगह है, जहाँ स्ट्रीट वेंडर्स ना हो? इंडिया गेट के पास आइसक्रीम बेचती रेहड़ियां, यूपीएससी के पीछे की चाट, यहाँ तक एयरपोर्ट पर भी वेंडर्स होते हैं। जहाँ आम आदमी हैं, वहां उसकी जरूरतों को पूरा करने के लिए वेंडर हैं।

हाल ही में दिल्ली हाई कोर्ट ने उत्तरी दिल्ली नगर निगम और दिल्ली पुलिस से चांदनी चौक – जो कि एक नो-वेंडिंग जोन है – में वेंडर्स की उपस्थिति का कारण पूछा। कोर्ट जवाब चाहता है कि आखिर चांदनी चौक से स्ट्रीट वेंडर्स को पूरी तरह से क्यों हटाया नहीं गया।

स्ट्रीट वेंडर कानून 2014 के अनुसार ‘नो-वेंडिंग इलाका’ नगर निगम या स्थानीय प्राधिकरण, टाउन वेंडिंग समिति की सलाह से ही तय कर सकता है। मगर हाई कोर्ट का तर्क है कि चांदनी चौक ‘पहले से’ ही नो-वेंडिंग इलाका घोषित है।

“पहले से” एक समस्या है – जिसका समाधान ये नया कानून यानि कि 2014 का कानून है। चूँकि ‘पहले से’ कोई विधायिका द्वारा पास किया कानून नहीं था, सिर्फ कागज़ी नीतियों के आधार पर नगर निगम नो-वेंडिंग जोन बनाती गयी। कुछ केसों में, अदालतों ने नो-वेंडिंग जोन को हरी झंडी दी। लेकिन हमारी संवैधानिक व्यवस्था में कानून बनाने का अधिकार सिर्फ विधायिका के पास है – कार्यपालिका और न्यायपालिका के पास नहीं। इसी सिद्धांत के अनुरूप, सर्वोच्च न्यायलय ने 9 सितम्बर 2013 को ‘महाराष्ट्र एकता हॉकर्स यूनियन’ केस में एक आदेश दिया – कि पुराने जो भी, जितने निर्देश और आदेश है, वो सिर्फ नया कानून आने तक ही वैध होंगे। अब जब संसद द्वारा पास किया कानून लागू है, तो पुराने सर्वे और नो-वेंडिंग जोन की मान्यता का प्रश्न ही नहीं उठता। 2014 का कानून भी साफ़-साफ़ कहता है कि जब तक कानून के अनुसार सर्वे नहीं हो जाता, तब तक कोई वेंडर को उसकी जगह से हटाया न जाए। कानून की पूरी तरह धज्जियाँ उड़ाते हुए कई शहरों में वेंडर्स को उनकी जगह से बेदखल किया गया।

नए कानून के अनुसार, कोई नेचुरल मार्किट, जहाँ वेंडर्स अपना बाजार लगाते रहे हो, वो कभी नो-वेंडिंग इलाका नहीं हो सकता। भीड़-भाड़ और ट्रैफिक जाम के कारण कभी वेंडर्स को हटाया नहीं जा सकता। क्योंकि भीड़-भाड़ और जाम लगने के कारण तो पैदल चालक, गाड़ियों, रिक्शों, और दुकानदार की वजह से भी होता है या हो सकता है, ऐसे में केवल स्ट्रीट वेंडर ही ज़िम्मेदार क्यों? साफ़-सफाई रखना नगर निगम का काम है, और गंदगी फ़ैलाने पर निगम के पास जुर्माना लगाने का अधिकार भी है, इसलिए गंदगी की वजह से भी वेंडरों को हटाया नहीं जा सकता। नया कानून तो यहाँ तक कहता है कि सर्वे से पहले नो-वेंडिंग जोन तय नहीं किया जा सकता।

जहाँ पथ है , वहां पथिक है और पथ विक्रेता भी है। और विक्रेता है, तो ग्राहक भी है। इसी से तो शहर की रौनक है। कानून इस बात को बखूबी समझता है। पर, शायद उसे पढ़ने वाले नहीं।

यह लेख मूल रूप से 23 सितंबर 2021 को नवभारत टाइम्स में  प्रकाशित हुआ था|

 

लेखक के बारे में

प्रशांत नारंग

प्रशांत नारंग एडवोकेट हैं। सेंटर फॉर सिविल सोसाइटी में उनके सबसे महत्वपूर्ण योगदान में ईज ऑफ डूइंग बिजनेस सुधार सिफारिशें और स्ट्रीट वेंडर कंप्लायंस इंडेक्स शामिल हैं। उन्होंने राजस्थान में स्ट्रीट वेंडर कानून के कार्यान्वयन के लिए सर्वोच्च न्यायालय से एक अनुकूल निर्णय भी प्राप्त किया। कानूनी क्षेत्र के सुधारों, शिक्षा का अधिकार अधिनियम और स्ट्रीट वेंडर्स अधिनियम पर लिखित जर्नल पेपर और छोटे टुकड़े होने के कारण, उनकी वर्तमान रुचि क्षेत्र कानून का शासन और भारत में व्यापार और व्यापार करने का संवैधानिक अधिकार है।

डिस्क्लेमर:

ऊपर व्यक्त विचार लेखक के निजी हैं और ये आवश्यक रूप से आजादी.मी के विचारों को परिलक्षित नहीं करते हैं।

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