कार्ल मेन्गर
व्यक्तित्व एवं कृतित्व
[1840 – 1921]
कार्ल मेन्गर की दो प्रमुख उपलब्धियां हैं. पहली तो वे ऑस्ट्रियाई अर्थाशास्त्र के जन्मदाता हैं और दूसरी, वे मार्जिनल युटिलिटी रिवॉल्युशन के सह-प्रतिपादक भी माने जाते हैं. मेन्गर ने विलियम जेवंस और लिओन वारस की तुलना में अलग तरीके से काम किया और दोनों एक समान नतीजों पर पहुंचे. जेवंस की तरह मेन्गर नहीं मानते थे कि ‘उत्पाद’ यानी (सामान या गुड्स) ‘उपयोगिता’ की ‘इकाइयां’ (units of utility) प्रदान करते हैं. उन्होंने लिखा उत्पाद उपयोगी हैं, जो भिन्न-भिन्न रूप में उपयोगिता प्रदान करते हैं और उनका महत्व भी भिन्न होता है. उदाहरण के लिए पानी की पहली बाल्टी का उपयोग सबसे महत्वपूर्ण काम के लिए होता है. बाद में इसकी उपयोगिता और महत्व कम होता जाता है.
मेन्गर ने अपनी तर्क शक्ति द्वारा ‘हीरा-पानी‘ के विरोधाभास को दूर किया जिसने एडम स्मिथ (पढ़ें marginalism के बारे में) को भ्रमित कर दिया था. उन्होंने इसका प्रयोग श्रम सिद्धांत की उपयोगिता को नकारने में भी किया. उन्होंने बताया कि किसी सामान की कीमत उसमें लगे श्रम द्वारा निर्धारित न होकर इस बात पर निर्भर करती है कि उस उत्पाद में किस तरह लोगों की आवश्यकताओं की पूर्ति की क्षमता है. मेन्गर ने श्रम सिद्धांत की पूर्ति को सर्वोपरी माना. अगर उत्पाद की कीमत का निर्धारण उसके द्वारा प्रदान की गई संतुष्टि से होता है तो श्रम का निर्धारण उस उत्पाद को बनाने में लगे सामान और श्रमिक की योग्यता पर निर्भर करता है.
मेन्गर मूल्य के विषयगत सिद्धांत की मदद से उस महत्वपूर्ण निर्णय पर पहुंचे कि विनिमय से दोनों पक्षों का लाभ होता है. या आधुनिक शब्दावली के अनुसार – विनिमय सकारात्मक योग का खेल है. व्यक्ति हमेशा कम कीमत वाली वस्तु का विनिमय अधिक कीमत वाली वस्तु से करता है. दोनों व्यावासायिक व्यक्ति ऐसा करते हैं क्योंकि इससे दोनों को लाभ होता है. यह विचार इस निष्कर्ष पर ले जाता है कि मध्यस्थ व्यक्ति बहुत अधिक फलदायी है. यह व्यक्ति दोनों ही पक्षों का फायदा करवाता है जो खरीदता है उसका भी और जो बेचता है उसका भी. मध्यस्थ व्यक्ति के बिना यह प्रक्रिया या तो जटिल होती या खूब महंगी.
मेन्गर ने यह भी स्पष्टीकरण दिया कि मुद्रा का विकास किस तरह हुआ और जो आज तक सर्वमान्य है. उनका मानना था कि व्यक्ति यदि अदला-बदली के सिद्धांत का महज उपयोग करते थे तब उन्हें अपनी पसंद या जरूरत की वस्तु दो या तीन विनिमय में मिलती थी. उदाहरण के लिए यदि किसी के पास लैंप है और उसके बदले उन्हें कुर्सियां चाहिए तो उन्हें सीधे कुर्सियां प्राप्त नहीं होती थी. उसके लिए उन्हें एक या दो विनिमय करने पड़ते थे, जो एक बड़ी बाधा थी. लोगों का मानना था कि इस बाधा को दूर किया जा सकता था. यदि उनके पास कोई ऐसी चीज जो सर्वमान्य हो तथा जिसका उपयोग वे अपनी जरूरत की वस्तु को क्रय करने के लिए कर सकते. वह वस्तु जो सर्वमान्य थी, मुद्रा के रूप में विकसित हुई. ‘प्युनरी’ शब्द लैटिन के ‘पीयूस’ शब्द से आया, जिसका मतलब पशुधन होता है और इसका उपयोग कुछ समुदायों में मुद्रा के रूप में होता था. अन्य समुदायों ने सिगरेट, नमक, पशुओं की खालों आदि का उपयोग मुद्रा के रूप में किया. जैसे-जैसे अर्थशास्त्र समृद्ध और जटिल होता गया उन्होंने मूल्यवान धातुओं (सोना, चांदी आदि) का उपयोग मुद्रा के रूप में किया.
मेन्गर ने अपना अध्ययन अन्य संस्थाओं पर भी लागू किया. उन्होंने भाषा को उदाहरण के रूप में प्रस्तुत किया. भाषा विकास भी उन्हीं समान कारणों से हुआ जिन कारणों से मुद्रा का विकास हुआ. लोग भाषा का उपयोग मुख्य रूप से अपनी भावनाओं और विचारों के आदान-प्रदान और संवाद के लिए करते हैं. मेन्गर ने यह भी बताया कि भाषा और मुद्रा का विकास सरकार ने नहीं किया. अतः उन्होंने इस प्रकार के विकास को चेतन बताया.
ऑस्ट्रियन अर्थशास्रीय अध्ययनशाला के विचार मेन्गर की रचनाओं का संकलन था जिसमें उनके दो शिष्यों युजिन वॉन बौम-बार्वक और फ्रीडरिक वॉन विज़र के विचार भी शामिल थे. बाद में ऑस्ट्रियाई अर्थशास्त्री लुडविग वॉन मिज़ीस और फ्रीडरिक हायक ने मेन्गर के विचारों का अपने शोध के आरंभिक बिंदु के रूप में उपयोग किया. मिज़ीस ने मुद्रा पर और फ्रीडरिक हायक ने ‘स्वाभाविक क्रम’ पर शोध कार्य किया.
कार्ल मेन्गर का जन्म गार्सिया के एक समृद्ध परिवार में हुआ था. गार्सिया तात्कालीन ऑस्ट्रो-हंगरी का हिस्सा था, अब दक्षिणी पोलैंड में है. वह तीन बुद्धिमान भाइयों में से एक थे. इनमें से एनटॉन विधिक दार्शनिक और समाजवादी इतिहासकार थे तथा कार्ल (Karl) जाने-माने गणितज्ञ थे. मेन्गर ने अपनी डॉक्टरेट की उपाधि कारकॉन विश्वविद्यालय से 1867 में प्राप्त की. 1871 में उनके द्वारा लिखे ‘अर्थशास्त्र के सिद्धांत’ के प्रकाशित होने के बाद वे विएना विश्वविद्यालय में पहले लैक्चरर और बाद में प्राध्यापक के रूप में नियुक्त हुए जहां उन्होंने 1903 तक कार्य किया. 1876 में वे ऑस्ट्रीया के युवराज रुडॉल्फ के शिक्षक भी रहे. उसी पद पर रहते हुए उन्होंने जर्मनी, फ्रांस, स्विट्जरलैंड और इंग्लैंड की यात्रा की.
कार्ल मेन्गर की प्रमुख रचनाएं
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