एम.जी. रानडे
व्यक्तित्व एवं कृतित्व
[जन्म 1842 – निधन 1901]
वे पश्चिमी भारत के बहुआयामी व्यक्तित्व थे, जिन्होंने एक जज के रूप में अपनी सेवाएं पूर्ण योग्यता के साथ प्रदान कीं। सामाजिक सुधार आंदोलन के एक जुझारू नेता, जो आर्थिक समस्याओं के अध्ययन के लिए संस्थानों की स्थापना करना चाहते थे। उन्होंने 1885 में नेशनल सोशल कान्फ्रेंस और 1890 में इंडस्ट्रियल एसोसिएशन की स्थापना की। इन संगठनों द्वारा तैयार किए मेमोरेंडा के दूरगामी नतीजे हुए। धार्मिक सुधारों की ओर भी इनका रूझान हुआ और प्रार्थना समाज का इन पर गहरा प्रभाव पड़ा, जो ब्रह्म समाज का ही एक अंग था। उनका मानना था कि सुधारों के बिना भारत की राष्ट्र के रूप में कल्पना बेकार है। जो बदलाव हम चाह सकते हैं, वे हैं- अंकुश से स्वतंत्रता, अविश्वास से विश्वास, अनुबंध के स्तर से अधिकार, प्रभुत्व से तर्क, अव्यवस्थित से व्यवस्थित जीवन, असहनशीलता से सहनशीलता, अंध स्वीकार्यता से मानव प्रतिष्ठा की समझ।
साभार: इंडियन लिबरल ग्रुप