मैनुअल स्कैवेंजिंग का अभिशाप
मैनुअल स्कैवेंजिंग के अभिशाप से कब मुक्त होगा भारत?
बाम्बे हाईकोर्ट ने 3 फरवरी 2022 को सख्त रुख अपनाते हुए राज्य सरकार से पूछा कि कब प्रदेश में मैनुअल स्कैवेंजिंग मशीनों से रिप्लेस होगी?
"हाथ से मैला ढोने की प्रथा पर पूर्ण विराम कब होगा? ये सवाल करते हुए बाम्बे हाईकोर्ट के " मुख्य न्यायाधीश दीपांकर दत्ता और न्यायमूर्ति वीरेंद्र सिंह बिष्ट की पीठ अपनी नाराजगी जाहिर की है। उन्होंने कहा कि राज्य भर के नगर निगमों को “हाथ से मैला ढोने की प्रथा बंद करनी चाहिए और मशीनीकृत मैला ढोने की प्रथा को अपनाना चाहिए”।
भारत की सामाजिक संरचना कुछ इस प्रकार है कि यहां एक्टर का बच्चा एक्टर, कारोबारी का बच्चा-कारोबारी, अधिकारी का बच्चा अधिकारी और नेता का बच्चा नेता बनता है। इसमें भी अच्छी बात ये है कि ये सभी काम किसी एक खास जाती वर्ग तक सीमित या थोपे नहीं गए है।
2022 के डिजीटल भारत में जिसने कोरोना जैसी गंभीर बीमारी का वैक्सीन अपने बल पर बना लिया हो, जो आज ब्रिटेन, अमेरिका जैसे देशों के सेटालाइट अंतरिक्ष में भेजता हो..जिस भारत में दुनिया के सबसे ज्यादा संख्या में अरबपति निवास करते हों, वहां एक काम ऐसा भी है जो आज भी हमारे पिछड़ेपन, सामाजिक भेदभाव और असमानता को रेखांकित करता है।
ये काम है सार्वजनिक क्षेत्रों, निजी क्षेत्रों में साफ-सफाई और मैला ढोने का काम। ये ऐसा काम है जिसे एक बेहद पिछड़े और कमजोर दलित तबके के लिए शुरू से ही आरक्षित कर के रखा गया है।
“मैनुअल स्कैवेंजर्स का रोज़गार और शुष्क शौचालय का निर्माण (निषेध) अधिनियम, 1993” के तहत देश में हाथ से मैला ढोने की प्रथा को प्रतिबंधित कर दिया गया है तथा इसे संज्ञेय अपराध मानते हुए ऐसे मामलों में एक वर्ष तक के कारावास और जुर्माने का प्रावधान किया गया है। इसके विपरीत सच्चाई ये है कि लगभग तीन दशक बाद आज भी देश में कम से कम 58,098 हाथ से मैला ढोने का काम कर रहे हैं। जिनमें 97 फीसदी दलित हैं। जो अपना घर चलाने के लिए हाथ से मैला उठाते हैं।
- भारत में मैनुअल स्कैवेंजिंग की स्थिति:
वर्ष 2002 में केंद्रीय सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्रालय द्वारा जारी एक अनुमान के अनुसार, देश में लगभग 79 मिलियन लोग इस कुप्रथा से जुड़े हुए थे।
भारत के नियंत्रक और महालेखा परीक्षक द्वारा वर्ष 2003 में जारी एक रिपोर्ट में वर्ष 1993 के अधिनियम की असफलताओं को रेखांकित किया गया था।
वर्ष 2018 में मैनुअल स्कैवेंजिंग से जुड़ी मौतों के 68 मामले सामने आए थे जबकि वर्ष 2019 में 61% की वृद्धि के साथ ऐसे मामलों की संख्या बढ़कर 110 तक पहुँच गई। राष्ट्रीय स्तर पर किये गए एक सर्वेक्षण के तहत 31 जनवरी, 2020 तक देश के 18 राज्यों में मैनुअल स्कैवेंजिंग से जुड़े लगभग 48,000 लोगों की पहचान की गई थी।
सामाजिक न्याय और अधिकारिता राज्य मंत्री रामदास अठावले ने 10 मार्च 2021 को संसद में बताया कि सीवर और सैप्टिक टैंक की खतरनाक ढंग से सफाई करने के कारण 2015 से 2019 के बीच देश में 389 लोगों की मौत हो गई।
17 राज्यों में 66,692 लोग ये काम कर रहे है।
वर्ष 2018 के एक सर्वेक्षण के अनुसार, उत्तर प्रदेश राज्य में मैनुअल स्कैवेंजिंग से जुड़े 29,923 लोगों की पहचान की गई थी, जो देश के किसी भी राज्य से अधिक है।
- देश में राज्यवार स्थिति:
दिसंबर 2021 तक, सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्रालय ने देश के 17 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में 58,098 हाथ से मैला ढोने वालों की पहचान की थी। उत्तर प्रदेश में सबसे अधिक 32,473 हाथ से मैला ढोने वालों की संख्या है, इसके बाद महाराष्ट्र में 6,325, उत्तराखंड में 4,988, असम में 3,921 और कर्नाटक में 2,927 हैं।
- क्या कर रही है सरकार?
2022-23 के केंद्रीय बजट में मैनुअल स्कैवेंजर्स के पुनर्वास के लिए स्वरोजगार योजना (SRMS) के तहत हाथ से मैला ढोने वालों के पुनर्वास के लिए 70 करोड़ रुपये आवंटित किए गए हैं।
हाथ से मैला उठाने वालों के नियोजन का निषेध और उनका पुनर्वास अधिनियम 2013, देश में हाथ से मैला ढोने पर पूरी तरह से प्रतिबंध है।
जिला और राज्य स्तरीय सर्वेक्षण समितियों के गठन का निर्देश है जो उन लोगों की पहचान करते हैं जो हाथ से मैला ढोने का काम करते हैं और उन्हें रोजगार के लिए लिंक प्रदान करते हैं।
अधिनियम के तहत, हर एक मैनुअल स्कैवेंजर्स, जिसने मैला ढोना छोड़ दिया है, छह महीने के खर्च के साथ उसकी मदद करने के लिए 40,000 रुपये की राशि का हकदार है।
इस बीच उन्हें कौशल प्रशिक्षण दिया जाएगा और अन्य नौकरियों के लिए रोजगार योग्य बनाया जाएगा। उन्हें 10 लाख रुपये तक का आसान ऋण उपलब्ध होगा। उन्हें दो साल तक के लिए हर महीने 3,000 रुपये की सहायता राशि भी मिलेगी और यहां तक कि उनके आश्रितों को भी कौशल-प्रशिक्षण कार्यक्रमों तक पहुंच प्राप्त होगी।
मैनुअल स्कैवेंजिंग की व्यापकता के कारण:
- सामाजिक परिवेश:
मैनुअल स्कैवेंजिंग की प्रथा भारत की जाति व्यवस्था से जुड़ी हुई है। जहाँ ऐसा प्रचलन है कि तथाकथित निचली जातियों से ही इस काम को कराना चाहिए।
यह सामाजिक भेदभाव मैनुअल स्कैवेंजिंग को छोड़ चुके श्रमिकों के लिये आजीविका के नए या वैकल्पिक माध्यम प्राप्त करना कठिन बना देता है। ऐसे में लोगों को अपने परिवार के भरण-पोषण के लिये अन्य अवसरों की अनुपस्थिति में एक बार पुनः मैनुअल स्कैवेंजिंग की ओर ही लौटना पड़ता है।
- अधुनिकता का अभाव:
बड़े स्तर पर आधुनिक उपकरणों का आभाव मैनुअल स्कैवेंजिंग की एक और प्रमुख वजह है।
नगर निगमों में बजट का अभाव और इस ओर ज्यादा ध्यान ना देना इसकी बड़ी वजह है।
मैनुअल स्कैवेंजिंग के दौरान मृत्यु के मामलों में वृद्धि का सबसे बड़ा कारण यह है कि अधिकांशतः मैनहोल को साफ कर रहे लोगों के पास पर्याप्त उपकरण और सुरक्षात्मक समान नहीं होते हैं।
इस कार्य में लगे लोग अक्सर बाल्टी, झाड़ू और टोकरी जैसे बुनियादी उपकरणों का ही प्रयोग करते हैं।
- गैर जिम्मेदाराना रवैया:
कई अध्ययनों में राज्य सरकारों द्वारा इस कुप्रथा को समाप्त कर पाने की असफलता को स्वीकार न करना और इसमें सुधार के प्रयासों की कमी को एक बड़ी समस्या बताया है। मैनुअल स्कैवेंजिंग को समाप्त करने हेतु नवीन तकनीकों में निवेश करने और इससे जुड़े श्रमिकों के पुनर्वास की बजाय अधिकांश नगरपालिकाओं द्वारा इस कुप्रथा के वर्तमान में भी जारी रहने से इनकार किया जाता है। शून्य कार्रवाई?
डिस्क्लेमर:
ऊपर व्यक्त विचार लेखक के निजी हैं और ये आवश्यक रूप से आजादी.मी के विचारों को परिलक्षित नहीं करते हैं।
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