जलकृषि एवं मत्स्य-पालन
भारत में जलकृषि का मत्स्य-पालन में योगदान सबसे ज्यादा है तथा भारत में मत्स्य पालन काफी पुरानी प्रथा है। देश में मत्स्य पालन अर्थव्यवस्था को आगे बढ़ाने में भी एक महत्वपूर्ण क्षेत्र है। लगभग 2.3 करोड़ से भी ज्यादा किसान आज मछली पालन से अपनी आजीविका चलाते है। लोगों की बढ़ती भागीदारी से मत्स्य पालन क्षेत्र हर साल 10.88% की वृद्धि से आगे बढ़ रहा है। जिसको देखते हुए भारत सरकार ने 2020 में "प्रधानमंत्री मत्स्य संपदा योजना की शुरुआत की है। जिसके अंतर्गत ₹ 20,000 करोड़ मत्स्य पालन क्षेत्र में निवेश करने की योजना है।
मछली पालन की दुनिया में भारत:
भारत दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा मछली उत्पादक देश है, जो 2020 में वैश्विक उत्पादन का 7.56% हिस्सा है। इस क्षेत्र ने देश के सकल मूल्य वर्धित (जीवीए) में लगभग 1.24% और 2020-21 में कृषि जीवीए में 7.28% से अधिक का योगदान दिया। 2019-20 में भारत का मछली उत्पादन 14.2 मिलियन टन था। अंतर्देशीय मत्स्य पालन का कुल मछली उत्पादन का 74% हिस्सा है, जबकि शेष का योगदान समुद्री मत्स्य पालन का है।
नीली क्रांति को केंद्र सरकार का बढ़ावा:
प्रधानमंत्री मत्स्य संपदा योजना, 'नीली क्रांति' लाने की योजना, 20,050 करोड़ रुपये के निवेश के साथ 2020-21 से 2024-25 तक लागू की जा रही है। केंद्र ने 2022-23 में योजना के लिए 1,879 करोड़ रुपये आवंटित किए हैं, जबकि 2020-21 में संशोधित अनुमानों के तहत 1,200 करोड़ रुपये आवंटित किए गए हैं।
मछली पालन को बढ़ावा देने के लिए पांच प्रमुख बंदरगाहों का विकास:
मछली पकड़ने के लिए 5 प्रमुख बंदरगाहों- कोच्चि, चेन्नई, विशाखापत्तनम, पारादीप और पेटुआघाट - को आर्थिक गतिविधियों के केंद्र के रूप में विकसित किया जा रहा है, जिसमें विश्व स्तरीय अवसंरचना और सुविधाओं, निर्बाध और गुणवत्ता वाली कोल्ड चेन और हाइजीनिक हैंडलिंग, फसल के बाद के नुकसान में कमी लाने लिए लगभग 600 करोड़ खर्च किए जाएंगे। इस संबंध में, जहां कहीं भी आवश्यक हो, डीपीआर की तैयारी और प्रभाव आकलन कर परियोजनाओं को मंजूरी प्रदान कर दी जाएगी।
मछली पालन से भारतीयों का जुड़ाव:
मछली भारतीय परिवारों के भोजन एवं प्रोटीन पूर्ति का मुख्य साधन है। इसके अलावा हमारे देश में मत्स्य का सामाजिक व सांस्कृतिक, परम्पराओं एवं रीति-रिवाजों में भी महत्त्व परिलक्षित है। भारत में मत्स्य-पालन रोजगार, आहार, पोषण के अलावा विदेशी मुद्रा अर्जित कर भारतीय अर्थव्यवस्था को सुदृढ़ बनाने में एक महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
भारत में मछली पालक किसानों के प्रकार:
देश में मछुआरों को दो प्रकार से वर्गीकृत किया जा सकता है, अर्थात समुद्री मछुआरे और मछली किसान (एक्वाकल्चरिस्ट), जलीय कृषि जिसके लिए भारी पूंजी निवेश की आवश्यकता होती है।
जलीय कृषि देश में अभी भी शुरूआती अवस्था में है और पारंपरिक समुद्री मछुआरों को उनकी मौजूदा प्रथाओं के अनुसार बहुत अधिक पूंजी की आवश्यकता नहीं होती है ।
इस योजना के अंतर्गत और पीएमएमएसवाई के तहत, डीओएफ राज्य सरकारों और मछुआरों/मछली पालकों के साथ मिलकर सर्वोत्तम प्रथाओं के बारे में जागरूकता उत्पन्न करने और उन्हें अपनी गतिविधियों को बढ़ाने के लिए प्रोत्साहित करने की दिशा में काम कर रहा है ।
मछली पालकों की कठिनाइयां:
मछली पालन करने में किसानो को कई कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है। जिसमें से एक समस्या है मछली बीज की खरीद। मछली बीज की उपलब्धता को लेकर किसान के पास उपयुक्त जानकारी न होने के कारण उन्हे मछली बीज दूर से मंगवाना पड़ता है, जिससे मछली बीज के मरने की संभावना बढ़ जाती है और लागत भी ज्यादा आती है।
किसान क्रेडिट कार्ड (केसीसी):
केंद्रीय वित्त मंत्रालय द्वारा आत्मनिर्भर भारत पैकेज के अंतर्गत किसान क्रेडिट कार्ड (केसीसी) योजना के तहत मछुआरों और मछली पालकों सहित 2.5 करोड़ किसानों को 2 लाख करोड़ रुपये की रियायती ऋण की घोषणा की गई। इस प्रकार, मत्स्य पालन विभाग ने सभी राज्यों/केंद्र शासित प्रदेशों के सहयोग से मत्स्य पालन और मत्स्य पालकों को केसीसी जारी करने के लिए कई बार विशेष अभियान चलाया है।इसके अलावा माननीय केंद्रीय मत्स्य पालन, पशुपालन और डेयरी मंत्री, श्री परशोत्तम रूपाला ने 15 नवंबर, 2021 को मत्स्य पालन और मत्स्य पालकों को शामिल करने के लिए किसान क्रेडिट कार्ड (केसीसी) अभियान की शुरुआत की। जिसमें अधिकांश मछुआरों और मत्स्य किसानों को संस्थागत ऋण के दायरे में लाने के प्रयास किए गए।
डिस्क्लेमर:
ऊपर व्यक्त विचार लेखक के निजी हैं और ये आवश्यक रूप से आजादी.मी के विचारों को परिलक्षित नहीं करते हैं।
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