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राजा राममोहन राय

व्यक्तित्व एवं कृतित्व

[जन्म 1772 – निधन 1833]

ऐसा नहीं है कि बिना वजह ही राजा राममोहन को भारतीय पुनर्जागरण का जनक कहा जाता है। बतौर एक प्रखर और जुनूनी समाज सुधारक के नाते, वे विधवाओं के पुनर्विवाह, बालिकाओं की शिक्षा और उत्तराधिकार कानूनों में बदलावों के शुरूआती पैरोकारों में से थे। बेशक, सती प्रथा का अंत भी उन्हीं के प्रयासों का ही नतीजा है।

उनकी मानवाधिकारों, लोकतांत्रिक मूल्यों और लोगों के साथ संवाद स्थापित करने की तत्परता से जुड़ी प्रतिबद्धता ही उन्हें सर्वोत्कृष्ट उदारपंथी बनाती है। उन्हीं से आधुनिक भारतीय उदारपंथी आंदोलन का आरंभ होता है।

वे चाहते थे कि पाश्चातय शिक्षा को प्रोत्साहित तो किया जाए लेकिन भारतीय भाषाओं की कीमत पर नहीं। बहुमुखी प्रतिभा के धनी, वे पहले आम भारतीय थे जिन्होंने इंग्लैण्ड की यात्रा की। उन्हें सही मायनों में आधुनिक भारत का जनक कहा जाता है।

उन्हें धर्मो के तुलनात्मक अध्ययन के अगुवा विद्वानों में से एक माना जाता है। जिन्होंने इस्लाम और ईसाई समेत कई धर्मों का संवेदी और समालोचनात्मक तरीके से अध्ययन किया। उनके अंदर चल रही अशांति के चलते ही वे धार्मिक ज्ञानोदय चाहते थे और मौजूदा हिंदुत्व से अंसतुष्टता के कारण ही उन्होंने 1828 में ब्रह्म समाज की स्थापना की।

साभार: इंडियन लिबरल ग्रुप